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हिन्दी नाटक रंगमंच की किसी विशेष परम्परा के साथ अनुस्यूत नहींद है। पाश्चात्य रंगमंच की उपलब्ध्यिाँ ही हमारे सामने हैं। परन्तु न तो हमारा जीवन उन सब उपलब्ध्यिों की माँग करता है, और न ही यह सम्भव प्रतीत होता है कि हम उस रंगशिल्प को व्यापक रूप से ज्यों का त्यों अपने यहाँ प्रतिष्ठित कर दें। हिन्दी रंगमंच के विकास से निस्सन्देह यह अभिप्राय नहीं है कि अत्याधुनिक सुविधाओं से सम्पन्न रंगशालाएँ राजकीय या अर्द्धराजकीय संस्थाओं द्वारा जहाँ-तहाँ बनवा दी जाएँ जिससे वहाँ हिन्दी नाटकों का प्रदर्शन किया जा सके। प्रश्न केवल आर्थिक सुविधा का ही नहीं, एक सांस्कृतिक पूर्तियों और आकाँक्षाओं का प्रतिनिधित्व करना होगा, रंगों और राशियों के हमारे विवेक को व्यक्त करना होगा। हमारे दैनदिन जीवन के राग-रंग को प्रस्तुत करने के लिए, हमारे सम्वेदों और स्पन्दनों को अभिव्यक्त करने के लिए, जिस रंगमंच की आवश्यकता है, वह पाश्चात्य रंगमंच से कहीं भिन्न होगा। इस रंगमंच का रूपविधान नाटकीय प्रयोगां के अभ्यन्तर से जन्म लेगा और समर्थ अभिनेताओं तथा दिग्दर्शकों के हाथों उसका विकास होगा। सम्भव है यह नाटक उन सम्भावनाओं की खोज में कुछ योग दे सके।
About the Author
Product details
Publisher : Rajpal Publishing
Language : Hindi
Hardcover: 128pages
ISBN-10 : 8170284007
ISBN-13 : 9788170284000
Item Weight : 230g
Dimensions : 20 x 14 x 4 cm
Country of Origin : India